बंगाल चुनाव... क्या सच मे दो भाई मिलकर बंगाल मे मचाएंगे तबाही...?
बंगाल में चुनावी मौसम नज़दीक आते ही राजनीतिक हलचलें तेज़ हो गई हैं। इसी बीच पूर्व मंत्री हुमायूँ कबीर द्वारा 300 करोड़ रुपये की लागत से प्रतीक बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा ने प्रदेश की राजनीति में नई आग जला दी है।
कबीर, जो पहले बीजेपी में रह चुके और बाद में टीएमसी में शामिल हुए थे, अब फिर से राजनीतिक मंच पर सक्रिय होते दिख रहे हैं। उन्होंने 22 दिसंबर को ‘अगले राजनीतिक कदम’ का खुलासा करने का भी ऐलान किया है। उनकी बयानबाज़ी में AIMIM और असदुद्दीन ओवैसी का नाम भी सामने आया है, हालांकि पार्टी ने इससे दूरी बनाई है।
AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता आसिम वकार ने साफ कहा कि “हुमायूँ कबीर का बाबरी मस्जिद से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें बीजेपी ने ध्रुवीकरण के लिए मैदान में उतारा है।”
वकार का दावा है कि कबीर TMC में आने से पहले BJP में थे, और आज भी उनकी रणनीति से बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिल सकता है।
उधर, बीजेपी ने भी मोर्चा संभालते हुए आरोप लगाया कि ममता बैनर्जी मुसलमानों को खुश करने के लिए कबीर को बढ़ावा दे रही हैं। पार्टी ने अपने मुस्लिम नेताओं—मुख्तार अब्बास नक़वी, शहनवाज़ हुसैन और गिरिजा शंकर सिंह—को आगे कर TMC पर ‘तुष्टीकरण’ का आरोप दोहराया है।
BJP का तर्क है कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार द्वारा कबीर के कार्यक्रमों के लिए पुलिस बंदोबस्त उपलब्ध कराना राजनीतिक मंशा का संकेत है।
लेकिन दूसरी ओर, प्रदेश में हाल ही में हुए सामूहिक गीता पाठ के विशाल आयोजन में करीब पाँच लाख लोगों की उपस्थिति और अनेक साधु-संतों के साथ BJP नेताओं की भागीदारी ने भी सवाल खड़े किए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि “जब दोनों पक्ष धार्मिक प्रतीकों की राजनीति कर रहे हों, तब किसी एक को दोषी ठहराना मुश्किल हो जाता है।”
इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सबसे अहम सवाल वही पुराना है—
क्या मतदाता को सिर्फ चुनावी खेल का मोहरा समझकर, धर्म के आधार पर बांटने की कोशिशें फिर तेज़ होने वाली हैं?
बंगाल में चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही राजनीतिक दल अपने-अपने पत्ते खोलने लगे हैं। लेकिन जनता के बीच एक बेचैनी साफ झलकती है—
क्या सियासत एक बार फिर विकास के मुद्दों से भटककर धार्मिक ध्रुवीकरण पर टिक जाएगी?
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