मोबाइल में ‘सरकारी जासूस’? संचार साथी ऐप को लेकर सियासत गरमाई
( सिटिज़न सारांश ) केंद्र सरकार द्वारा सभी नए स्मार्टफोनों में अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल किए जाने वाले “संचार साथी ऐप” को लेकर देश की राजनीति अचानक तेज हो गई है। विपक्ष इसे नागरिकों की निजता से जुड़ा गंभीर मुद्दा बता रहा है, जबकि सरकार इसे एक आधुनिक, सुरक्षित और स्वदेशी संचार व्यवस्था की दिशा में उठाया गया कदम मान रही है।
सरकार की योजना के अनुसार यह ऐप एकीकृत संचार प्लेटफॉर्म के रूप में काम करेगा, जिसमें कॉल, मैसेज और सरकारी सेवाओं को एक ही जगह उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है। केंद्र का कहना है कि इस ऐप के ज़रिए उपयोगकर्ताओं को सरकारी योजनाओं और सेवाओं तक आसान व सुरक्षित पहुंच मिलेगी, इसलिए इसका प्री-इंस्टॉलेशन आवश्यक है।
लेकिन इस कदम पर विपक्ष ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने संसद में इस ऐप को “जासूसी ऐप” बताते हुए मोदी सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस ऐप के माध्यम से लोगों की निजी जानकारी, कॉल गतिविधि और संचार पर नजर रखने की मंशा रखती है। प्रियंका गांधी का कहना है कि ऐप के डेटा सुरक्षा मानकों, गोपनीयता नीतियों और उपयोगकर्ता अधिकारों पर कोई स्पष्ट जानकारी सरकार ने सार्वजनिक नहीं की है, जिससे शंका और बढ़ जाती है। उनका कहना है कि एक लोकतांत्रिक देश में ऐसे ऐप को अनिवार्य करना नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
उधर, सरकार ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। सूचना एवं दूरसंचार मंत्रालय का कहना है कि यह ऐप केवल सुरक्षित, स्वदेशी और एकीकृत संचार के लिए विकसित किया गया है और किसी भी प्रकार की निगरानी या डेटा संग्रह की नीयत सरकार की नहीं है। मंत्रालय का यह भी दावा है कि ऐप में आधुनिक सुरक्षा मानकों का पालन किया जाएगा और नागरिकों की गोपनीयता सुरक्षित रहेगी।
हालाँकि विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। नागरिकों के मन में भी सवाल बना हुआ है—
क्या यह ऐप सुविधा लाएगा या निगरानी का नया डर?
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