आईए जाने क्यों मनाई जाती है दिपावली ?
दिवाली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख और पवित्र त्यौहार है। यह त्यौहार न केवल रोशनी और उल्लास का प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, सामाजिक और एकात्मिक महत्व भी है। दीपावली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश की विजय और नयी शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व का विशेष महत्त्व हिन्दू धर्म के साथ-साथ जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी है। आइए इसे धार्मिक, सामाजिक और एकात्मिक संदर्भ में विस्तार से समझें !
दिवाली का पर्व मुख्य रूप से भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना से जुड़ा हुआ है। जब भगवान राम ने 14 वर्षों के वनवास और राक्षस रावण का वध कर बुराई पर विजय प्राप्त की और अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तो अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में अपने घरों और गलियों को दीपों से सजाया। यह दीपों की माला, खुशी और उमंग का प्रतीक बनी और तभी से यह परंपरा दिवाली के रूप में मनाई जाने लगी।
इसके अलावा, दिवाली का संबंध माता लक्ष्मी के पूजन से भी है। यह माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा का भी विशेष महत्त्व है। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सुख की देवी माना जाता है, और व्यापारी वर्ग इस दिन उनका पूजन करते हैं, ताकि आने वाले समय में उनके घरों में सुख-समृद्धि बनी रहे। इसके अतिरिक्त, दिवाली का महत्त्व भगवान विष्णु के अवतारों और उनके कार्यों के साथ भी जुड़ा हुआ है।
सिख धर्म में दिवाली का महत्व गुरु हरगोबिंद जी की मुक्ति से जुड़ा हुआ है, जिन्हें मुग़ल शासक जहांगीर ने कारागार में बंद कर दिया था। उनकी रिहाई और उनके साथ अन्य बंदियों की मुक्ति की खुशी में सिख समुदाय इस दिन को मनाता है। जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे ‘मोक्ष दिवस’ के रूप में देखा जाता है!
दिवाली का पर्व सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार आपसी मेल-जोल, भाईचारा और सामूहिकता का प्रतीक है। इस अवसर पर लोग अपने परिवार, मित्रों और पड़ोसियों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं। घरों की सफाई, सजावट और नए वस्त्र पहनना इस बात का संकेत देता है कि हम सभी को अंधकार से निकलकर जीवन में नई शुरुआत करनी चाहिए !
दिवाली का त्यौहार समाज में एकता और प्रेम को बढ़ावा देता है। लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाई बांटते हैं, बधाई देते हैं और पुराने मतभेद भूलकर एक नई शुरुआत करते हैं। इस तरह से यह त्यौहार समाज में आपसी समर्पण, सहयोग और सौहार्द का संदेश देता है। दीपावली के दिन लोग अपने घरों और दुकानों की सफाई कर, दीयों की रोशनी से उसे सुंदर बनाते हैं, जिससे समाज में स्वच्छता और सौंदर्य का संदेश प्रसारित होता
दिवाली का पर्व एकात्मिकता और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान जब लोग अपने मन, मस्तिष्क और घरों को स्वच्छ करते हैं, तो वे अपने भीतर की बुराइयों और नकारात्मकताओं को भी दूर करने का प्रयास करते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि अंधकार का अंत केवल बाहरी दीयों से नहीं, बल्कि हमारे भीतर के अज्ञान, द्वेष और बुराइयों को दूर करके ही किया जा सकता है।
दीपावली के दीयों की रोशनी इस बात का प्रतीक है कि हमें अपने जीवन में आत्मज्ञान के प्रकाश का संचार करना चाहिए। यह एक अवसर है, जब हम आत्म-विश्लेषण करें और अपने भीतर की अच्छाईयों को बढ़ावा दें। लक्ष्मी पूजा के माध्यम से मनुष्य अपने मन की शुद्धि की ओर बढ़ता है और अपने जीवन में आध्यात्मिकता का संचार करता है।
इस दिन का एकात्मिक संदेश यह है कि मनुष्य को अपने अंदर के अंधकार को दूर कर ज्ञान, प्रेम और सत्य के प्रकाश को अपने जीवन में लाना चाहिए। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि सत्य, प्रेम, और करुणा के मार्ग पर चलने से ही सच्ची आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
दिवाली का पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सामाजिक और एकात्मिक परंपरा भी है जो हमें जीवन में नया दृष्टिकोण अपनाने और बुराइयों का त्याग कर अच्छाइयों को अपनाने की प्रेरणा देता है। यह त्यौहार हमें अपने रिश्तों में मिठास, समाज में समर्पण और आत्मा में प्रकाश भरने का संदेश देता है।
दीपावली का यह पर्व हमारे जीवन को एक नया उत्साह, नई ऊर्जा और नई दिशा प्रदान करता है। इस पवित्र पर्व को मनाते समय हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि यह केवल एक परंपरा ही नहीं, बल्कि एक संदेश भी है जो हमें बेहतर मानव बनने के लिए प्रेरित करता है।
अली रज़ा आबेदी
8983123110
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