इमम्तियाज़ भाई एकला चलो... एकला चलो... एकला चलो रे...
गुस्ताख़ी माफ
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की घंटी जल्द ही बजने वाली है। बस आचार संहिता कब से लागू होगी, यह बचा है। कौन किसके साथ होगा, इस पर राज्य में "सेटिंग्स" हो रही है, बैठकें हो रही हैं, चाहे वह महाविकास आघाड़ी हो या महायुति, सीटों का गणित तैयार किया जा रहा है। एक महीने पहले AIMIM के पूर्व सांसद और प्रदेश अध्यक्ष इम्तियाज जलील ने कहा था कि हम महाविकास आघाड़ी के साथ जाने को इच्छुक हैं। कुछ दिन पहले फिर से कहा, "बात करो, हम आपके साथ आ रहे हैं, हमारी ताकत का आपको भी फायदा होगा, हमारी हैसियत के अनुसार सीटें दो।" हालांकि समय बीत गया, फिर भी महाविकास आघाड़ी वाले एक साधारण बयान देने को भी तैयार नहीं हैं। क्यों डर रहे हैं महाविकास वाले...? उन्हें पता है कि AIMIM का साथ लेते ही बीजेपी वाले तुरंत हंगामा करेंगे, "देखो... हिंदू भाईयों, महाविकास वालों ने जिहादियों को साथ लिया।" टीवी पर पालतू मीडिया का शोर भी शुरू हो जाएगा... महाविकास वालों को हिंदू वोट बैंक खिसकने का डर तो है ही..!! इसलिए जलील ने विनम्रता दिखाने के बजाय अपनी ताकत दिखानी चाहिए.... भूल जाओ.... तुम्हें चॉकलेट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा...!!
???? AIMIM की ताकत मुसलमानों के वोट हैं... दुर्भाग्य से पूर्व सांसद जलील दस सालों में पार्टी का संगठन मजबूत करने में सफल नहीं हो पाए। उन्हें 'सो कॉल्ड सेक्युलरिज्म' के नाम पर स्थानीय मुसलमानों का साथ नहीं मिला। AIMIM को 'जज्बाती' पार्टी मानने का भ्रम खुद मुस्लिम समाज में है। यही कारण है कि पश्चिम महाराष्ट्र, विदर्भ से लेकर सीधे कोंकण तक पार्टी टिक नहीं पाई। मुंबई में भी अप्रत्याशित कुछ नहीं हुआ। मुस्लिम समाज परंपरागत रूप से कांग्रेस समर्थक है, यह एक बड़ी चुनौती है...! साथ ही मुस्लिम समाज को AIMIM पार्टी सर्वसमावेशी समाज के हित की रक्षा करने वाली नहीं लगती। ऐसा महसूस होता है। चूंकि सत्ता में AIMIM का आना असंभव है, पुराने मुस्लिम कांग्रेस और राष्ट्रवादी के समर्थकों के लिए AIMIM एक 'सेफ जोन' नहीं है। राज्य में AIMIM में एकाधिकार होने की भावना सर्वविदित है। पिछले कुछ सालों में AIMIM में शामिल हुए कई नेता और कार्यकर्ता कुछ कथित 'चमचों' की वजह से वापस लौट गए या उनका नेतृत्व से जुड़ाव नहीं हो पाया... यह सच्चाई नकारा नहीं जा सकता.... खैर...!
???? इस बीच लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी ने 30 सीटों पर जीत दर्ज कर महायुति को बैकफुट पर ला दिया। वहीं, राज्य में मालवन में महाराज की मूर्ति गिरने के बाद बीजेपी की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ गईं। प्रधानमंत्री ने माफी मांग ली, फिर भी महाविकास नेताओं ने राजनीतिक माहौल गरमाए रखा। शिंदे की "लाडली बहन" भी इस उथल-पुथल में पीछे रह गई। बीजेपी के नेताओं को जवाब देते समय काफी मुश्किलें हुईं। चारों ओर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। आम लोगों की समस्याएं तो चूल्हे में चली गईं...!! इस सकारात्मक माहौल में महाविकास का 'ओवर कॉन्फिडेंस' बढ़ गया है। अगर उन्होंने AIMIM को साथ लिया, तो महाराज की मूर्ति का खेल फेल हो जाएगा। इसलिए वे जलील के बयान को गंभीरता से नहीं ले रहे।
???? फिलहाल AIMIM के पास धुले-मालेगांव की केवल दो सीटें हैं। मालेगांव में मुफ्ती इस्माइल अपनी ताकत पर ही जीतते हैं। लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों ने कांग्रेस के उम्मीदवार को एकमुश्त वोट देकर जिताया था। अगर इस बार ये वोट फिर से कांग्रेस के पास गए तो मुफ्ती की मुश्किलें बढ़ेंगी...! धुले में भी त्रिकोणीय मुकाबले में AIMIM अप्रत्याशित रूप से जीती थी। औरंगाबाद में तो क्या? विधायक जीतेंगे या नहीं? यह सवाल है। इस पर महाविकास ने अध्ययन किया है। ओवैसी ने जलील को टिकट देने की घोषणा तो कर दी, लेकिन पूर्वी से दो बार कड़ा मुकाबला देने वाले गफ्फार कादरी का क्या? अगर उन्हें नकारा गया तो विवाद होगा ही...! इसलिए बेवजह इतनी विनम्रता मत दिखाओ...!! अपनी ताकत दिखाओ...! अगर तुम्हें साथ लेकर उन्हें सहारा मिलेगा, वे तुम्हें जिताएंगे... मंत्री बनाएंगे... तो इस धोखे में मत पड़ो...
अशफाक शेख, वरिष्ठ पत्रकार
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