विलादत जनाबे फ़ातेमा ज़हेरा स.अ. आप सब को मुबारक... !
जनाबे फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) की विलादत का दिन 20 जमादिउस्सानी को मक्का में हुआ। उनके पिता हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) और माता जनाबे ख़दीजा (स.अ.) थीं। किताब "बिहारुल अनवार" (भाग 43) में लिखा है कि जनाबे फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) की विलादत न केवल इंसानों बल्कि फरिश्तों और तमाम मख़लूक़ात के लिए रहमत और बरकत का सबब बनी।
"अल-काफ़ी" और "तफ्सीर-ए-नूर-ए-सकलैन" में उल्लेख है कि जनाबे ख़दीजा (स.अ.) को उनके क़रीबी रिश्तेदारों और मक्के की औरतों ने इस मौके पर अकेला छोड़ दिया था। लेकिन अल्लाह ने फरिश्ते भेजे, जिनमें हज़रत मरयम (स.अ.), हज़रत आसिया (स.अ.), और हूर-ए-जन्नत शामिल थीं, जिन्होंने इस पवित्र मौके पर मदद की।
"कामिलुज़ ज़ियारात" के अनुसार, जनाबे फ़ातेमा (स.अ.) की विलादत के दौरान घर में नूर की बारिश हुई और आसमान से आवाज़ आई, "फ़ातेमा को 'ज़हरा' कहो, क्योंकि वह नूर का स्रोत हैं।"
उनकी विलादत के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि वह न केवल रसूलुल्लाह (स.अ.) की बेटी बल्कि उम्मत के लिए मार्गदर्शक और महिलाओं के लिए एक आदर्श होंगी। उनके व्यक्तित्व और जीवन को शिया साहित्य में "सैय्यदतुन निसा अल-आलमीन" (सारी दुनिया की औरतों की सरदार) कहा गया है।
इस वाक़ये से यह शिक्षा मिलती है कि जनाबे फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) की विलादत केवल एक परिवार के लिए नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए अल्लाह की रहमत और रहनुमाई का जरिया थी।
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