मराठी मे एक महावरा है " गरज़ सरो वैद्य मरो... एक नाथ शिंदे भारतीय जनता पार्टी के लिए इस कहावत को सार्थक करते नज़र आ रहे है !
एकनाथ शिंदे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच की राजनीति वर्तमान समय में महाराष्ट्र की सत्ता संतुलन और गठबंधन की जटिलता को दर्शाती है। कुछ मुख्य कारण जिनकी वजह से शिंदे को नजरअंदाज किया जा सकता है, वे इस प्रकार
भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी है और उसने शिंदे गुट को समर्थन देकर सरकार बनाई। हालांकि, भाजपा का मुख्य लक्ष्य सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखना है। शिंदे के नेतृत्व वाला गुट भाजपा की तुलना में कमजोर स्थिति में है, और भाजपा उसे ज्यादा महत्व देने की जगह अपने हित साधने में जुटी है !
अजित पवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गुट भाजपा के साथ आ गया, जिससे सत्ता समीकरण बदल गए। अजित पवार की मजबूत पकड़ और एनसीपी का वोट बैंक भाजपा के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। इस कारण अजित पवार को वित्त मंत्रालय जैसे बड़े विभाग मिलने की संभावना है
शिंदे का गुट शिवसेना से टूटकर आया, लेकिन उसकी खुद की राजनीतिक ताकत सीमित है। शिंदे भाजपा के लिए एक समय पर उपयोगी थे, लेकिन अब भाजपा उनके विकल्प ढूंढ रही है।
शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के खिलाफ शिंदे गुट को बड़ी सफलता नहीं मिल पाई है। इसके अलावा, भाजपा को यह एहसास हो रहा है कि शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना की पकड़ कमजोर हो गई है, जिससे वे कम प्रासंगिक हो गए है !
गृह मंत्रालय एक संवेदनशील विभाग है, और इसे संभालने के लिए भाजपा अपने भरोसेमंद व्यक्ति को नियुक्त करना चाहती है। शिंदे को यह विभाग न देना भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है
शिंदे गुट की राजनीतिक स्थिति फिलहाल भाजपा पर निर्भर है। यदि शिंदे खुलकर विरोध करते हैं, तो उनकी राजनीतिक स्थिति और कमजोर हो सकती है। इस कारण, वे अपमान सहते हुए भी गठबंधन में बने रहने को मजबूर है !
यदि शिंदे भाजपा की रणनीति से असंतुष्ट होते हैं, तो वे गठबंधन से अलग होकर स्वतंत्र राजनीति करने का प्रयास कर सकते हैं। हालांकि, ऐसा करना उनके राजनीतिक भविष्य के लिए जोखिम भरा होगा।
यह सब महाराष्ट्र की सत्ता समीकरणों की जटिलता और भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। आगे आने वाले समय में यह देखना होगा कि शिंदे इस स्थिति से कैसे निपटते हैं।
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