अब जैन मंदिर मे हिंदु मंदीर की खोज... मस्जिदो के निचे मंदीर खोजने वाले जैन वकिल पिता - पुत्र की जोडी काश स्व. रहात इदौरी सहाब का शेर लगे गी आग तो ज़द मे.... सुन और समझ ते !
मंदिर, मस्जिद और समाज: एक खतरनाक प्रवृत्ति
राहत इंदौरी ने बड़ी गहराई से कहा था,
"लगेगी आग तो ज़द में कई घर आएंगे,
इस गली में हमारा अकेला मकान थोड़ी है।"
आज भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवाद इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस आग की लपटें केवल एक समुदाय या एक धर्म तक सीमित नहीं रहेंगी।
सागर जिले का विवाद: धार्मिक सौहार्द पर प्रश्न
मध्य प्रदेश के सागर जिले में बड़ा बाजार क्षेत्र में एक जैन मंदिर के निर्माण के दौरान जैन और हिंदू समुदायों के बीच विवाद ने तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी। जैन समुदाय के कुछ युवाओं पर सोनी-जड़िया समाज के कुलदेवता के मंदिर में तोड़फोड़ का आरोप लगा। इस घटना ने दोनों समुदायों को आमने-सामने ला दिया।
घटना के बाद बाजार बंद रहे, और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को धारा 144 लागू करनी पड़ी। इस विवाद ने सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित किया, लेकिन प्रशासन की मध्यस्थता से दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी कि विवादित स्थल पर मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
मंदिर-मस्जिद विवाद: गहरी होती खाई
एडवोकेट हरी शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन मस्जिदों के स्थान पर प्राचीन मंदिर होने के दावे से जुड़े मामलों में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। उनकी कानूनी रणनीतियों ने कई विवादों को जन्म दिया है, जो केवल सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करते हैं।
इन वकीलों ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि जिस चिंगारी को वे हवा दे रहे हैं, वह आग बनकर उनके अपने समाज को भी प्रभावित करेगी। सागर की घटना इस बात का उदाहरण है कि धार्मिक विवाद किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पूरे समाज को अपनी चपेट में ले लेते हैं।
समाज का बदलता स्वरूप
आज का युवा रोजगार और प्रगति की ओर देखने के बजाय मंदिरों और मस्जिदों में इतिहास खोजने में लगा है। यह विडंबना है कि बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को पीछे छोड़कर धार्मिक राजनीति को समाज के केंद्र में रखा जा रहा है। युवाओं को पढ़ाई और कौशल विकास के बजाय "हिंदू खतरे में है" जैसे नारों से गुमराह किया जा रहा है।
धर्मों का मूल संदेश और वास्तविकता
जैन धर्म और हिंदू धर्म दोनों ही भारत की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा हैं। जैन धर्म अहिंसा और आत्मशुद्धि पर जोर देता है, जबकि हिंदू धर्म बहुदेववाद और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के संतुलन को महत्व देता है। दोनों धर्म नैतिकता, पुनर्जन्म और आध्यात्मिकता के महत्व को स्वीकार करते हैं।
लेकिन विडंबना यह है कि जिन धर्मों का आधार शांति, अहिंसा और सद्भाव है, उन्हें आज राजनीति का औज़ार बनाकर विभाजन का माध्यम बनाया जा रहा है।
सागर जिले की घटना और मंदिर-मस्जिद विवाद हमें यह सिखाते हैं कि धार्मिक विभाजन की आग न केवल समाज को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों को भी कमजोर करती है। हमें यह समझने की जरूरत है कि धर्म समाज को जोड़ने का साधन है, तोड़ने का नहीं।
आवश्यक है कि युवा रोजगार और प्रगति की ओर बढ़ें, और समाज में भाईचारे और समानता को प्राथमिकता दी जाए। राहत इंदौरी के शब्द हमें चेतावनी देते हैं कि आग लगाने वालों को इस बात का अंदाज़ा नहीं होता कि उसकी तपिश सबको झुलसा सकती है। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी है कि इस आग को फैलने से रोकें और धर्म को मानवता के कल्याण का माध्यम बनाएं।
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