प्रधानमंत्री और टेलीप्रॉम्प्टर: एक ‘तकनीकी’ रिश्ता!
देश के सबसे बड़े मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के भाषणों का जादू हर कोई मानता है। उनका वक्तृत्व कौशल, चुटीले तंज, और हर वाक्य में जोश भरने की कला बेजोड़ है। लेकिन हाल ही में कुछ ‘तकनीकी व्यवधानों’ ने इस छवि को थोड़ा विचलित कर दिया है। टेलीप्रॉम्पटर के फेल होने की खबर ने सोशल मीडिया और कॉफी टेबल चर्चाओं में नया मसाला दे दिया है।
जरा सोचिए, जब एक नेता के पास देश को संबोधित करने का सुनहरा मौका हो और अचानक टेलीप्रॉम्पटर रूठ जाए! अरे भई, ये तकनीक भी ऐसी नखरेबाज है जैसे कोई दोस्त, जो मुसीबत के वक्त आपका फोन उठाने से मना कर दे। अब अगर टेलीप्रॉम्पटर फेल हो जाए तो नेता का भी कन्फ्यूज होना लाजिमी है। और जब बात प्रधानमंत्री की हो, तो उनकी बोलती बंद होने की खबर सुनकर विपक्ष और ट्रोल्स के लिए तो यह किसी दिवाली से कम नहीं।
सोचिए, अगर नेताजी के दिमाग में यही सवाल घूम रहा हो: "अब क्या करूं?" यह दृश्य किसी बड़े नाटक से कम नहीं होगा। एक तरफ मंच की गरिमा, दूसरी तरफ लाइव कैमरे, और बीच में टेलीप्रॉम्पटर की गद्दारी!
लेकिन अगर गौर करें, तो इसमें मजाक कम और सीख ज्यादा है। आखिरकार, तकनीक पर अति निर्भरता से नुकसान ही होता है। मोदी जी को शायद यह एहसास हो गया होगा कि स्पीच तैयार करने के साथ-साथ दिल से बोलने की कला भी जरूरी है। क्योंकि दिल से बोले गए शब्द न तो टेलीप्रॉम्पटर फेल होने पर अटकते हैं और न ही जनता के दिल में उतरने से चूकते हैं। हाला कि वो मन की बात रेडिओ पर करते है! स्टुडिओ मे बैठकर!
हो सकता है, इस घटना के बाद मोदी जी तकनीकी टीम को कुछ ‘मन की बात’ सुनाएं और अगली बार मंच पर जाते वक्त अपने ‘जुगाड़ू’ स्वभाव का सहारा लें। लेकिन तब तक, जनता और विपक्ष इस मौके को व्यंग्य और तंज के तीरों से भरपूर भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
कहने को तो यह ‘टेलीप्रॉम्पटर फेल’ है, लेकिन इसके चर्चे ऐसे हो रहे हैं, जैसे कोई बड़ा स्कैंडल हुआ हो। खैर, इससे यह जरूर साबित हो गया कि बड़े-बड़े नेता भी कभी-कभी तकनीक की ‘कृपा’ पर निर्भर हो जाते हैं।
अंत में, एक बात तो तय है—भाषण चाहे फेल हो जाए, लेकिन मनोरंजन का स्तर जरूर हाई रहता है!
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