डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया: विशेषज्ञों की राय और संभावित प्रभाव

14 जनवरी 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.64 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ, जबकि पिछले दिन यह 86.58 पर था।
अक्षय चिंचलकर, शोध प्रमुख, एक्सिस सिक्योरिटीज: चिंचलकर के अनुसार, अंतर्निहित अस्थिरता के रुझानों से संकेत मिलता है कि मार्च के अंत तक रुपया 87 तक पहुंच सकता है। उन्होंने ट्रेजरी यील्ड में वृद्धि और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल को रुपये की कमजोरी के प्रमुख कारक बताया है।
अजय बग्गा, बैंकिंग और बाजार विशेषज्ञ: बग्गा का मानना है कि रुपया अन्य वैश्विक मुद्राओं के अनुरूप दबाव का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि 2024 में रुपये ने अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन 2025 में अमेरिकी आर्थिक और बॉन्ड यील्ड में वृद्धि के चलते डॉलर मजबूत हो रहा है, जिससे वैश्विक मुद्राओं पर दबाव बढ़ रहा है।
संतोष मीणा, रिसर्च प्रमुख, स्वस्तिक इंवेस्टमार्ट: मीणा के अनुसार, डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बड़े उछाल के कारण रुपया गिर रहा है। उन्होंने विदेशी निवेशकों की निकासी और उभरती बाजारों की मुद्राओं में गिरावट को भी रुपये पर दबाव के कारक बताया है।
महंगाई में वृद्धि: रुपये की कमजोरी से आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे महंगाई दर में वृद्धि हो सकती है।
विदेशी शिक्षा और यात्रा महंगी: विदेश में पढ़ाई या यात्रा करने वालों के लिए खर्च बढ़ जाएगा, क्योंकि उन्हें अधिक रुपये खर्च करने होंगे।
व्यापार घाटा: कमजोर रुपया आयात को महंगा करेगा, जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
शेयर बाजार पर प्रभाव: रुपये में गिरावट से शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है, विशेषकर उन कंपनियों के लिए जो आयात पर निर्भर हैं।
रुपये की मौजूदा गिरावट वैश्विक और घरेलू दोनों कारकों का परिणाम है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ महीनों में रुपया 87 प्रति डॉलर तक गिर सकता है। हालांकि, आरबीआई और सरकार की सक्रिय नीतियां इस गिरावट को धीमा कर सकती हैं।
रुपये की इस गिरावट का सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ सकता है, इसलिए आर्थिक नीतियों में स्थिरता और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना आवश्यक होगा।
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