राष्ट्रपति का सर्वोच्च कर्तव्य: दही खिलाओ, लोकतंत्र बचाओ! एक तीखा-मीठा व्यंग्य

नागरिकशास्त्र, यानी Civics, वो पाठ जो बच्चों को बताता है कि देश का सिस्टम कैसे चलता है, कौन क्या करता है, और क्यों करता है। लेकिन महाराष्ट्र की आठवीं कक्षा की ( मराठी माध्यम ) की पाठ्यपुस्तक ने इसे नए मायने दे दिए हैं। अब राष्ट्रपति का काम सिर्फ़ संविधान की रक्षा करना, संसद को संबोधित करना, या बिलों पर साइन करना नहीं है। उनका असली कर्तव्य? प्रधानमंत्री को दही खिलाना! जी हाँ, आपने सही पढ़ा—दही, वो भी चम्मच से, प्यार से, और संवैधानिक ज़िम्मेदारी के साथ! नई शिक्षा नीति की चटपटी झलक नई शिक्षा नीति (NEP) ने पाठ्यक्रम में प्रैक्टिकल लर्निंग का तड़का लगाया है। अब बच्चे सिर्फ़ थ्योरी नहीं, बल्कि दही-प्रधानमंत्री सिद्धांत सीखेंगे। पाठ्यपुस्तक का नया चैप्टर है:Chapter 4: "प्रधानमंत्री के आहार प्रबंधन में राष्ट्रपति की भूमिका"उद्देश्य: बच्चों को नेतृत्व, पोषण, और लोकतंत्र का मलाईदार मिश्रण सिखाना।क्लास एक्टिविटी: अपने दोस्त को दही खिलाओ और चम्मच से लोकतांत्रिक रिश्ते मजबूत करो।होमवर्क: घर जाकर मम्मी-पापा को दही खिलाओ और लिखो—“मेरे परिवार में दही डिप्लोमेसी कैसे काम करती है?”???? किताब का संदेश: दही है देश की नींव!किताब का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री को रोज़ एक चम्मच दही मिले, तो उनका पाचन दुरुस्त रहेगा, दिमाग ठंडा रहेगा, और देश के फैसले भी कूल-कूल होंगे। शायद यही वजह है कि संविधान में अनुच्छेद 51(ड) में लिखा गया हो (या शायद जल्दी लिखा जाएगा):"राष्ट्रपति प्रतिदिन सुबह 9 बजे प्रधानमंत्री को एक कटोरी दही खिलाएंगे, जिसमें शक्कर या नमक स्वादानुसार डाला जा सकता है।"और अगर पीएम दही खाने से मना करें? तो राष्ट्रपति को संवैधानिक संकट से बचने के लिए दही जमाने की कला भी सीखनी होगी।किताब में छपी तस्वीर तो और भी मज़ेदार है। राष्ट्रपति जी, गंभीर मुद्रा में, चम्मच में दही लिए पीएम को शुभकामना देते हुए। शायद ये वो पवित्र “शुभकामना दही” है, जो किसी बड़े चुनावी दौरे या नीतिगत फैसले से पहले खिलाया जाता है।???? बच्चे अब परीक्षा में क्या लिखेंगे?प्रश्न: भारत के राष्ट्रपति का प्रमुख कर्तव्य क्या है?
उत्तर: प्रधानमंत्री को दही खिलाना, देश को मीठा बनाना, और लोकतंत्र को मलाईदार रखना।बोनस प्रश्न: अगर पीएम दही खाने से मना करें, तो राष्ट्रपति क्या करेंगे?
उत्तर: वो रायता बनाएंगे और विपक्ष को परोसेंगे!???? शिक्षाविदों का क्या कहना है?शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये नया पाठ्यक्रम बच्चों को लोकतंत्र की मुलायम और मलाईदार छवि देगा। अब कठोर शासन की बातें पुरानी हो चुकीं। अब वक्त है दही डिप्लोमेसी का! एक शिक्षक ने तो यहाँ तक कहा, “दही खिलाने से बच्चों में सहानुभूति, सहयोग, और स्वाद का भाव जागेगा।”लेकिन कुछ आलोचक पूछ रहे हैं—“क्या दही में सिर्फ़ शक्कर डाली जाएगी, या मसाला दही भी चलेगा?” और अगर पीएम को दही पसंद न हो, तो क्या राष्ट्रपति लस्सी या छाछ का इंतज़ाम करेंगे????? अगली किताब में क्या?अगर दही खिलाना संवैधानिक कर्तव्य बन गया, तो अगली पाठ्यपुस्तक में क्या-क्या देखने को मिलेगा?वित्तमंत्री को हलवा खिलाते राष्ट्रपति: बजट से पहले हलवा खिलाना अनिवार्य!गृहमंत्री को गुलाब जामुन परोसते राज्यपाल: आंतरिक सुरक्षा के लिए मिठास ज़रूरी।रक्षा मंत्री को रसमलाई देते CDS: सीमा पर शांति के लिए रसमलाई डिप्लोमेसी।???? सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़इस किताब के बाद ट्विटर (या X) पर मीम्स की बाढ़ आ गई है:“राष्ट्रपति भवन में अब दही जामन केंद्र खुलने वाला है!”“संविधान की नई धारा: दही न खिलाने पर 7 साल की सजा!”“अमूल का नया टैगलाइन: ‘राष्ट्रपति का दही, लोकतंत्र सही!’”निष्कर्ष: लोकतंत्र की मलाईदार नींवराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की ये दही डिप्लोमेसी बच्चों को चाहे जो सिखाए, लेकिन व्यंग्य प्रेमियों के लिए ये किसी लोटपोट कॉमेडी से कम नहीं। अगर संविधान का पालन दही खिलाने से हो सकता है, तो हमारा लोकतंत्र सचमुच बहुत स्वादिष्ट है।तो अगली बार जब आप राष्ट्रपति भवन की तस्वीर देखें, तो सोचिए—वहाँ सिर्फ़ संविधान की रक्षा नहीं हो रही, बल्कि दही की कटोरियाँ भी तैयार हो रही हैं।
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