ईद-ए-ग़दीर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

ईद-ए-ग़दीर की घटना-ए-ग़दीर ख़ुम से जुड़ी है, जो 10 हिजरी (632 ईस्वी) में पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के अंतिम हज (हज्जतुल विदा) के दौरान हुआ। शिया मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर ने ग़दीर ख़ुम नामक स्थान पर, मक्का से मदीना लौटते समय, एक विशाल सभा को संबोधित किया। इस सभा में, शिया इतिहासकारों के अनुसार, लगभग 70,000 से 1,25,000 लोग मौजूद थे। पैगंबर ने हज़रत अली का हाथ उठाकर घोषणा की:
"मन कुन्तु मौला फ़हाज़ा अलीयुन मौला "
(जिसका मैं आक़ा हूँ, उसका अली आक़ा है।)इसके बाद, उन्होंने कहा: "अकमलतु लकुम दीनकुम" (आज दिन मुक्कमल हुआ।) शिया समुदाय इस घोषणा को पैगंबर द्वारा हज़रत अली को अपने धार्मिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करने के प्रमाण के रूप में देखता है। इस घटना को शिया विलायत (नेतृत्व या संरक्षकता) की स्थापना के रूप में मानते हैं, और इसे इस्लाम में इमामत की नींव के रूप में महत्वपूर्ण मानते हैं।ईद-ए-ग़दीर को शिया समुदाय ईद-ए-बोज़ोर्ग-ए-इलाही (सबसे बड़ा ईश्वरीय त्यौहार) या अशरफ़ुल अय्याद (सर्वोच्च ईद) के रूप में भी मानता है। यह उनके लिए ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा से भी अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह इमामत और पैगंबर के परिवार (अहल-ए-बैत) की महत्ता को रेखांकित करता है।शिया समुदाय द्वारा ईद-ए-ग़दीर का उत्सवशिया मुसलमान इस दिन को उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। शिया समुदाय इस दिन विशेष नमाज़ (सलात-ए-ईद-ए-ग़दीर) अदा करता है। मस्जिदों और इमामबाड़ों में सामूहिक प्रार्थनाएं और दुआएं आयोजित की जाती हैं। इस दिन ग़दीर ख़ुम की घटना को याद करने के लिए जश्न(धार्मिक सभाएं) आयोजित की जाती हैं, जहां विद्वान हज़रत अली की इमामत और उनके गुणों पर प्रकाश डालते हैं। कुछ शिया इस दिन उपवास रखते हैं और गरीबों को दान (ज़कात या सदक़ा) देते हैं, जो इस्लाम में पुण्य का कार्य माना जाता है।लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं (ईद मुबारक), और मिठाइयों व भोजन का आदान-प्रदान करते हैं। कई जगहों पर सामुदायिक भोज और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
दैनिक सिटिज़न सारांश के सभी पाठकों को ईद-ए- ग़दीर मुबारक...!
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