बकरा ईद, मीडिया और मज़ाक: पत्रकार समीर अब्बास के केक विवाद पर एक नज़र

ईद-उल-अज़हा इस्लाम का एक पवित्र पर्व है जो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की अल्लाह के प्रति कुर्बानी की भावना को याद करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व आत्म-त्याग, भक्ति और शुद्ध नीयत की मिसाल है। इस्लाम में कुर्बानी का मकसद केवल एक जानवर की बलि देना नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति संपूर्ण समर्पण और मानवता की सेवा का संदेश देना है।
लेकिन जब इस्लामी मूल्यों को एक प्रतीकात्मक केक काटने के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, और उस पर जानवर (बकरा) की छवि होती है, तो यह ना केवल मज़ाक बनता है, बल्कि यह उस भावना का अपमान भी है जिसे इस पर्व के माध्यम से जीवित रखा गया है।
समीर अब्बास एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे धार्मिक मूल्यों और संवेदनाओं को समझकर कार्य करें। इस्लाम में दिखावा और दिखावटी श्रद्धा (रियाकारी) को नापसंद किया गया है। यदि कोई पत्रकार स्टूडियो में कैमरे के सामने बकरी के चित्र वाला केक काटकर ईद की बधाई देता है, लेकिन पहले उसी पर्व से जुड़ी मांसाहारी परंपराओं (जैसे मटन कोरमा, पुलाव आदि) को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करता है, तो यह विरोधाभास उसकी नीयत पर सवाल खड़ा करता है।
इस्लाम हमें सच्चाई, ईमानदारी और नीयत की सफाई सिखाता है। अगर किसी को मांस खाना पसंद नहीं है, तो वह व्यक्तिगत पसंद हो सकती है, लेकिन धार्मिक परंपराओं का सम्मान बनाए रखना हर मुसलमान की जिम्मेदारी है। सस्ती पब्लिसिटी, एक वर्ग विषेश की नजरो मे अपने आपको आम मुसलमानो से अलग दिखाने और किसी राजनीतिक दल की चाटुकारिता मे हदसे ज़्यादा गिरकर कुछ बईमान मुसलमान आजकल ऐसे ड्रामेबाज़ी करते हूए नजर आते है! इन चापलुसो को लेकर उन लोगो ने भी होशियार होने की ज़रूरत है! जिनकी चापलुसी मे गिरकर ये अपने ख़ुद की धार्मिक भावनाओ का मज़ाक उडा सकते है, वे लोग वक़्त पडने पर आज जिनके तलवे चाट रहे है, उनके साथ भी गद्दारी कर सकते है!
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