पाकिस्तानी शिया समुदाय पर सरकारी प्रतिबंध...नजफ से कर्बला पैदल यात्रा पर रोक और न्यायिक लड़ाई

नजफ से कर्बला पैदल यात्रा पर रोक और न्यायिक लड़ाई
पाकिस्तान में शिया समुदाय के लिए अरबईन के अवसर पर नजफ से कर्बला तक की पैदल यात्रा (मशी) एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है। यह यात्रा इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत की याद में की जाती है और दुनियाभर से लाखों शिया मुसलमान इसमें हिस्सा लेते हैं। हालांकि, हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने सड़क मार्ग से इस यात्रा पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया, जिसे शिया समुदाय ने "तुगलकी फरमान" करार दिया। इस फैसले के खिलाफ शिया समुदाय ने कानूनी लड़ाई शुरू की, जिसमें हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई और चकवाल सेशन कोर्ट में भी मामला उठाया गया। इस ब्लॉग में हम इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं, शिया समुदाय की प्रतिक्रिया, और न्यायिक प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अरबईन और नजफ-कर्बला पैदल यात्रा का महत्व
अरबईन, इस्लामिक कैलेंडर के सफर महीने की 40वीं तारीख को मनाया जाता है, जो इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के 40 दिन बाद की स्मृति (चैहलुम )में है। यह शिया समुदाय के लिए एक गहरा आध्यात्मिक अवसर है, जिसमें लाखों लोग इराक के नजफ से कर्बला तक पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामुदायिक एकता और बलिदान के मूल्यों को भी दर्शाती है। पाकिस्तान से हर साल हजारों शिया तीर्थयात्री (ज़ाएरीन) इस यात्रा में हिस्सा लेने के लिए सड़क मार्ग से ईरान और फिर इराक जाते हैं।
हालांकि, 28 जुलाई 2025 को पाकिस्तान सरकार ने एक विवादास्पद फैसला लिया, जिसमें सड़क मार्ग से नजफ-कर्बला यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला दिया, लेकिन शिया समुदाय ने इसे अपने धार्मिक अधिकारों पर हमला माना। इस फैसले ने देश में व्यापक रोष पैदा किया, और शिया समुदाय ने इसे चुनौती देने के लिए कानूनी रास्ता अपनाया।
पाकिस्तान सरकार ने अपने फैसले में कहा कि सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुश्किल है, खासकर अफगानिस्तान सीमा के नजदीक के संवेदनशील क्षेत्रों में। सरकार का तर्क था कि आतंकवादी हमलों और सांप्रदायिक हिंसा के खतरे के कारण यह प्रतिबंध जरूरी है। हालांकि, शिया समुदाय ने इस फैसले को एकतरफा और भेदभावपूर्ण बताया।
पाकिस्तान के प्रमुख शिया विद्वान और विफ़ाकुल मदारिस (पाकिस्तान शिया स्कूल एसोसिएशन) के अध्यक्ष आयतुल्लाह हाफ़िज़ सय्यद रियाज़ हुसैन नजफ़ी ने इस प्रतिबंध की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, "ज़ाएरीन पूरे साल इस यात्रा की तैयारी करते हैं। यह उनके धार्मिक अधिकारों का हिस्सा है। सरकार का यह फैसला न केवल खेदजनक है, बल्कि यह देश में पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ाएगा।"
इसके जवाब में शिया समुदाय ने देशव्यापी प्रदर्शन शुरू किए और इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया। साथ ही, चकवाल सेशन कोर्ट में भी इस मुद्दे से संबंधित एक याचिका दायर की गई, जिसमें सरकार के फैसले को रद्द करने की मांग की गई।
हाईकोर्ट में याचिका
शिया समुदाय के नेताओं और संगठनों ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें सरकार के प्रतिबंध को असंवैधानिक और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया गया।इस याचिका पर सुनवाई होनीथी लेकिन हाईकोर्ट के जस्टिस शम्स महहेमुद मिर्ज़ा सहाब ने सुनवाई से इन्कार कर दिया! याचिका में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया गया है !
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन - पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत, प्रत्येक नागरिक को अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने का अधिकार है। शिया समुदाय ने तर्क दिया कि नजफ-कर्बला पैदल यात्रा उनकी धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, और इस पर प्रतिबंध लगाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
सुरक्षा का बहाना- याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सरकार ने सुरक्षा का हवाला देकर एक काल्पनिक खतरा गढ़ा है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा बल तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम हैं, जैसा कि पहले कई बार हो चुका है।
आर्थिक बोझ- सड़क मार्ग से यात्रा सस्ती और सुलभ है, जबकि हवाई यात्रा के लिए कई तीर्थयात्रियों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। याचिका में कहा गया कि सरकार का यह फैसला गरीब और मध्यम वर्ग के तीर्थयात्रियों को उनकी धार्मिक प्रथा से वंचित करता है।
सांप्रदायिक भेदभाव- याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि यह फैसला शिया समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाता है, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।
हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई शुरू की, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। कोर्ट ने सरकार से इस फैसले के पीछे के कारणों और सुरक्षा व्यवस्थाओं के बारे में विस्तृत जवाब मांगा है। इस बीच, शिया समुदाय ने कोर्ट से अंतरिम राहत की मांग की है, ताकि अरबईन यात्रा के लिए तीर्थयात्री सड़क मार्ग से जा सकें।
इसी बिच सेशन कोर्ट का एक फ़ैसला आया है!
चकवाल, पंजाब प्रांत का एक जिला, शिया समुदाय का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां के सेशन कोर्ट में भी इस प्रतिबंध से संबंधित एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में स्थानीय शिया संगठनों ने तर्क दिया कि सरकार का फैसला न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है, क्योंकि कई लोग इस यात्रा से संबंधित व्यवसायों पर निर्भर हैं।
चकवाल सेशन कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी किया। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं करे और प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से निलंबित करे, जब तक कि इस मामले में अंतिम सुनवाई पूरी न हो जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को तीर्थयात्रियों के साथ परामर्श करना चाहिए और उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
हालांकि, इस फैसले को लागू करने में कई चुनौतियां सामने आई हैं। सरकार ने दावा किया कि सड़क मार्ग से यात्रा की अनुमति देने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की आवश्यकता होगी, जिसके लिए समय और संसाधनों की कमी है। इस बीच, शिया समुदाय ने इस फैसले को एक आंशिक जीत के रूप में देखा और इसे लागू करने के लिए दबाव बनाना जारी रखा।
शिया समुदाय की प्रतिक्रिया
शिया समुदाय ने इस प्रतिबंध के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किए। पूरे पाकिस्तान में, विशेष रूप से कराची, लाहौर, और चकवाल जैसे शिया-प्रधान क्षेत्रों में, हजारों लोग सड़कों पर उतरे। इन प्रदर्शनों में नारे लगाए गए जैसे "अरबईन हमारा हक है" और "सड़क मार्ग खोलो, ज़ाएरीन को रोको मत।"
आयतुल्लाह हाफ़िज़ सय्यद रियाज़ हुसैन नजफ़ी ने कहा, "सरकार को यह समझना चाहिए कि यह यात्रा केवल एक धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि हमारी पहचान का हिस्सा है। इसे रोकना हमारी आस्था पर हमला है।" उन्होंने सरकार से इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की और चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो विरोध और तेज होंगे।
पाकिस्तान में शिया-सुन्नी तनाव का इतिहास रहा है, और इस तरह के फैसले स्थिति को और जटिल बना सकते हैं। खैबर पख्तूनख्वा के कुर्रम जिले में हाल ही में हुई हिंसा, जिसमें 150 से अधिक लोग मारे गए, ने पहले ही सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है। शिया समुदाय का मानना है कि सरकार का यह फैसला न केवल उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है, बल्कि यह सांप्रदायिक सद्भाव को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके अलावा, इस प्रतिबंध से आर्थिक प्रभाव भी पड़ रहा है। सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले तीर्थयात्री स्थानीय परिवहन, होटल, और अन्य व्यवसायों पर निर्भर करते हैं। इस प्रतिबंध से इन व्यवसायों को नुकसान हो रहा है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।
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