रुपये पर संकट - बढ सकती है महंगाई RBI और सरकार की रणनीति, ट्रम्प की टैरिफ धमकी पर भारत का जवाब

( अली रज़ा आबेदी) 5 अगस्त 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 88.102 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। रुपये की इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 25% टैरिफ की धमकी प्रमुख है। लेकिन भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस संकट से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं। आइए, मौजूदा स्थिति और भारत के जवाब का विश्लेषण करें।
रुपये की गिरावट के कारण
ट्रम्प की टैरिफ धमकी
ट्रम्प ने 1 अगस्त 2025 से भारत पर 25% टैरिफ और रूस से तेल खरीद के लिए अतिरिक्त दंड की घोषणा की। उन्होंने भारत पर रूसी तेल खरीदकर मुनाफा कमाने और BRICS में भागीदारी का आरोप लगाया, जिसे वह "अमेरिका-विरोधी" मानते हैं। इस धमकी ने निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ाई, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपये पर दबाव बना।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली
जुलाई 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय बाजारों से 1.5 अरब डॉलर निकाले, जिसने रुपये को और कमजोर किया। वैश्विक अनिश्चितता और टैरिफ की आशंका ने इस बिकवाली को बढ़ावा दिया।
मजबूत डॉलर और वैश्विक कारक
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने डॉलर को मजबूत किया। साथ ही, चीनी युआन जैसी अन्य एशियाई मुद्राओं की कमजोरी ने भी रुपये पर असर डाला।
आयात पर निर्भरता
भारत का अमेरिका के साथ 44 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष और चीन के साथ 83 अरब डॉलर का व्यापार घाटा रुपये की स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। टैरिफ लागू होने से आयात महंगा हो सकता है, जिससे महंगाई बढ़ने का जोखिम है।
भारत सरकार का जवाब
5 अगस्त 2025 को, भारत सरकार ने ट्रम्प की धमकी पर कड़ा रुख अपनाया। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि भारत की तेल खरीद राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा पर आधारित है। मंत्रालय ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की "दोहरी नीति" पर सवाल उठाते हुए बताया कि 2024 में यूरोप का रूस के साथ व्यापार 67.5 अरब यूरो था, जबकि भारत का व्यापार उससे काफी कम था। भारत ने इस दबाव को "अनुचित और अतार्किक" करार दिया।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में कहा कि सरकार भारतीय हितों की रक्षा के लिए हर कदम उठाएगी। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है, और सरकार किसानों, छोटे उद्यमियों और निर्यातकों के हितों को प्राथमिकता दे रही है।
RBI की रणनीति
विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग
RBI के पास 638.26 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिसका उपयोग रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। हाल ही में RBI के हस्तक्षेप से रुपया 86.65 तक मजबूत हुआ था।
ब्याज दरों में कटौती
RBI ने 2025 में रेपो रेट में 1% की कटौती की है, और 6 अगस्त 2025 की बैठक में 25 बेसिस पॉइंट की और कटौती की उम्मीद है। यह अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ा सकता है, लेकिन रुपये पर अतिरिक्त दबाव का जोखिम भी है।
मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप
RBI डॉलर बेचकर रुपये की मांग बढ़ा सकता है, जिससे अल्पकालिक स्थिरता मिल सकती है।
निर्यात को बढ़ावा
कमजोर रुपया निर्यातकों के लिए फायदेमंद है। RBI और सरकार निर्यात-उन्मुख नीतियों को बढ़ावा दे सकते हैं।
रुपये की गिरावट का प्रभाव
महंगाई: आयातित सामान, विशेष रूप से तेल, महंगा होने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे महंगाई का जोखिम है।
निर्यातकों को लाभ: कमजोर रुपये से निर्यात सस्ता होता है, लेकिन टैरिफ इस लाभ को सीमित कर सकता है।
आम जनता: विदेशी यात्रा और पढ़ाई महंगी होगी, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
रुपये का भविष्य
विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर मौजूदा रुझान जारी रहा, तो रुपया 90 के स्तर को छू सकता है। कुछ विशेषज्ञों ने 100 के स्तर की चेतावनी दी है, लेकिन RBI के हस्तक्षेप और व्यापार समझौते की संभावना इसे सीमित कर सकती है।
रुपये की गिरावट एक गंभीर चुनौती है, लेकिन भारत सरकार और RBI सक्रिय कदम उठा रहे हैं। ट्रम्प की टैरिफ धमकी पर भारत का कड़ा जवाब और व्यापार समझौते पर जोर दर्शाता है कि देश अपनी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार और RBI को निर्यात बढ़ाने, भंडार का उपयोग करने और वैश्विक बाजारों में विविधता लाने पर ध्यान देना होगा। आम जनता को सलाह है कि इस अस्थिरता में सतर्क रहें और निवेश निर्णय विशेषज्ञों की सलाह से लें।
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