भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद इरान का समर्थन – पुराने दोस्त ने निभाई दोस्ती"

जब अमेरिका ने भारत की कुछ कंपनियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए, तब पूरी दुनिया चुप्पी साधे बैठी रही। लेकिन इसी बीच एक ऐसा देश खुलकर भारत के समर्थन में सामने आया, जिसने यह दिखा दिया कि सच्चे दोस्त मुसीबत में ही काम आते हैं।
वो देश है – इरान।
???????????????????? भारत-ईरान की दोस्ती: इतिहास में रची-बसी
भारत और ईरान के रिश्ते सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर भी गहराई से जुड़े हैं। चाहे वह चाबहार पोर्ट हो या ऊर्जा सहयोग, दोनों देशों ने समय-समय पर एक-दूसरे की मदद की है।
अमेरिका के प्रतिबंध: राजनीति या दबाव की रणनीति?
हाल ही में अमेरिका ने भारत की कुछ टेक और एनर्जी कंपनियों पर कथित रूप से “वैश्विक नीतियों के उल्लंघन” के आरोप में प्रतिबंध लगाए। इन प्रतिबंधों को भारत में कहीं राजनीतिक दबाव, तो कहीं चीन और रूस के समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन अमेरिका की इस चाल के बीच भारत को सबसे पहले समर्थन मिला — ईरान से।
ईरान का साफ संदेश:
"भारत पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध अनुचित हैं। भारत एक संप्रभु देश है और वैश्विक मंच पर उसकी स्वतंत्र भूमिका का सम्मान किया जाना चाहिए।"
समर्थन के पीछे क्या हैं कारण?
• ऊर्जा साझेदारी – भारत लंबे समय से ईरान से तेल का आयात करता आया है।
• चाबहार परियोजना – ईरान में भारत द्वारा विकसित किया जा रहा यह पोर्ट रणनीतिक रूप से बेहद अहम है।
• चीन और पाकिस्तान के खिलाफ साझा हित – दोनों देशों की सुरक्षा चिंताएं भी कई बार समान दिशा में जाती हैं।
अमेरिका को संकेत:
ईरान का यह समर्थन सिर्फ भारत के लिए एक नैतिक सहयोग नहीं, बल्कि अमेरिका को एक संदेश भी है —
"हम किसी दबाव में नहीं आने वाले। एशियाई ताकतों की एकता अब नए स्तर पर पहुँच रही है।"
अंधभक्तों को तमाचा: ईरान का समर्थन और खामनाई के पोस्टर की राजनीति
अभी कुछ ही समय पहले की बात है — जब इज़राइल के समर्थन में देश के कुछ "अंधभक्तों" ने न सिर्फ सोशल मीडिया पर ज़हर उगला, बल्कि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामनाई के पोस्टर तक फाड़ डाले। उन्हें लगा कि अमेरिका और इज़राइल की गोदी में बैठकर राष्ट्रभक्ति का नया पैमाना तय किया जा सकता है।
लेकिन वक्त ने फिर करवट ली।
अब वही ईरान, जिसे कुछ तथाकथित देशभक्त दुश्मन समझ बैठे थे, सबसे पहले भारत के समर्थन में खड़ा हुआ। उसने अमेरिका को चुनौती दी, और दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत पर बाहरी दबाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
"अब उन लोगों के गाल पर करारा तमाचा पड़ा है, जो अंधभक्ति में राष्ट्रहित भूल बैठे थे।"
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