अरबों का सफ़र इस्लाम से फिर जाहिलियत के दौर की ओर...ट्रम्प का यूएई दौरा और खलीजी नृत्य: क्या शरियत की अनदेखी इस्लाम का बदलता रूप दर्शाती है?

May 16, 2025 - 23:29
May 16, 2025 - 23:45
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अरबों का सफ़र इस्लाम  से फिर  जाहिलियत के दौर की ओर...ट्रम्प का यूएई दौरा और खलीजी नृत्य: क्या शरियत की अनदेखी इस्लाम का बदलता रूप दर्शाती है?

13 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में शानदार स्वागत हुआ। यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने अबू धाबी में ट्रम्प की अगवानी की, जिसमें एक पारंपरिक नृत्य "अल-अय्याला" प्रस्तुत किया गया। इस नृत्य में महिलाओं ने खुले बालों के साथ प्रदर्शन किया, जो इस्लाम के हिजाब और शील के नियमों को लेकर सवाल उठाता है। क्या यह सांस्कृतिक प्रदर्शन शरियत की नाफरमानी है? और क्या यह इस्लाम के बदलते रूप को दर्शाता है? आइए, इस विषय पर गहराई से विचार करें।अल-अय्याला नृत्य और सांस्कृतिक संदर्भअल-अय्याला, जिसे खलीजी नृत्य की एक शैली माना जाता है, यूएई की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। इस नृत्य में महिलाएँ अपने बाल लहराती हैं, जो मेहमानों के स्वागत का प्रतीक है। ट्रम्प के स्वागत में इस नृत्य को प्रस्तुत किया गया, जिसमें महिलाओं ने हिजाब नहीं पहना, क्योंकि बालों की गति इस नृत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रदर्शन यूएई की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है, लेकिन इस्लामी अहकाम के संदर्भ में विवाद का कारण बना।शरियत और हिजाब का हुक्मइस्लाम में हिजाब और शील के नियम स्पष्ट हैं। कुरान की सूरह अन-नूर (24:31) और सूरह अल-अहज़ाब (33:59) में महिलाओं को गैर-महरम पुरुषों (जिनसे निकाह जायज़ हो) के सामने अपने शरीर, सिर, और बाल ढकने का आदेश है। इस्लामी विद्वानों की आम सहमति है कि हिजाब में पूरा शरीर ढकना शामिल है, जिसमें केवल चेहरा और कुछ व्याख्याओं में हाथ-पैर बाहर रखे जा सकते हैं।ट्रम्प, एक गैर-महरम पुरुष, के सामने बिना हिजाब के अल-अय्याला नृत्य प्रस्तुत करना शरियत के इन नियमों का उल्लंघन माना जा सकता है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे "हराम" करार दिया, यह तर्क देते हुए कि जिस धर्म में खुले बाल रखना निषिद्ध है, वहाँ गैर-महरम मेहमान के सामने बाल लहराना इस्लामी नैतिकता के खिलाफ है।शरियत की नाफरमानी या सांस्कृतिक अभिव्यक्ति?खलीजी नृत्य, विशेष रूप से अल-अय्याला, यूएई में शादियों और उत्सवों का हिस्सा रहा है। यदि यह नृत्य केवल महिलाओं के बीच और शील के साथ किया जाए, तो कई इस्लामी विद्वान इसे जायज़ मान सकते हैं। लेकिन गैर-महरम पुरुषों के सामने, बिना हिजाब, और सार्वजनिक रूप से यह प्रदर्शन शरियत के खिलाफ है। कुछ आलोचकों ने यूएई पर इस्लामी सीमाओं की अनदेखी का आरोप लगाया, यह दावा करते हुए कि सांस्कृतिक विरासत के नाम पर शरियत का उल्लंघन हुआ।हालांकि, यूएई ने इस प्रदर्शन को अपनी सांस्कृतिक पहचान और आधुनिकता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। ट्रम्प ने इस स्वागत की सराहना की और यूएई के इस्लाम की "अद्भुत संस्कृति" की प्रशंसा की। यह दर्शाता है कि यूएई अपनी वैश्विक छवि को आधुनिक और खुले दृष्टिकोण के साथ पेश करना चाहता है।इस्लाम का बदलता रूप?क्या यह घटना इस्लाम के बदलते रूप को दर्शाती है? कुछ लोग इसे इस्लाम की उदार व्याख्या के रूप में देखते हैं, जहाँ सांस्कृतिक प्रथाएँ धार्मिक नियमों के साथ संतुलन बनाती हैं। दूसरों का मानना है कि यह शरियत से विचलन है, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों को कमज़ोर करता है। सोशल मीडिया पर यह बहस तेज़ है, जहाँ कुछ यूएई के इस कदम को "हिजाब-बुर्का संस्कृति" से हटकर आधुनिकता की ओर बढ़ता कदम मानते हैं, जबकि अन्य इसे इस्लामी अहकाम की अवहेलना मानते हैं।इस्लाम के मूल सिद्धांत—कुरान और सुन्नत—अपरिवर्तनीय हैं, लेकिन उनकी व्याख्या और अमल में सांस्कृतिक और क्षेत्रीय भिन्नताएँ देखी जाती हैं। यूएई जैसे देश, जो वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, अक्सर सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं को संयमित रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यह संतुलन तब विवादास्पद हो जाता है, जब शरियत के स्पष्ट नियमों, जैसे हिजाब, की अनदेखी होती है।

अली रज़ा आबेदी 

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