बाबा हरामदेव का शर्बत जिहाद...!

हमदर्द लैबोरेटरीज, 119 साल पुरानी यूनानी और आयुर्वेदिक दवा कंपनी, भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक रही है। 1906 में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद द्वारा स्थापित, हमदर्द ने रूह अफजा, साफी, सुआलिन, और जोशीना जैसे उत्पादों के जरिए हर समुदाय के दिल में जगह बनाई। 1948 में इसके मुनाफे का बड़ा हिस्सा वक्फ के रूप में दान कर शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित किया गया, जो सभी धर्मों और समुदायों के लिए खुला रहा। हमदर्द का इतिहास लगभग विवादमुक्त है, और इसने कभी भी धार्मिक या सामुदायिक बंटवारे की नीति नहीं अपनाई। रूह अफजा जैसे उत्पाद न केवल भारत, बल्कि विश्व भर में एकता और साझा संस्कृति का प्रतीक बने हैं।इसके विपरीत, बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद का इतिहास विवादों और सामाजिक तनाव को बढ़ाने वाली हरकतों से भरा है। हाल ही में रामदेव ने अपने पतंजलि गुलाब शरबत को बढ़ावा देने के लिए "शरबत जिहाद" जैसे आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया, जिसमें उन्होंने हमदर्द के रूह अफजा को निशाना बनाकर इसके मुनाफे को धार्मिक संस्थानों से जोड़ा। यह बयान न केवल घृणित और सामुदायिक ध्रुवीकरण को उकसाने वाला है, बल्कि यह रामदेव की संकीर्ण और निम्न स्तर की मानसिकता को भी उजागर करता है। एक ऐसे समय में, जब भारत सामाजिक एकता की चुनौतियों से जूझ रहा है, रामदेव का यह कदम सस्ते प्रचार और व्यावसायिक लाभ के लिए संवेदनशील मुद्दों का शर्मनाक दुरुपयोग है। यह निंदनीय है कि एक व्यक्ति, जो खुद को योग गुरु और आयुर्वेद का प्रचारक कहता है, समाज को बांटने वाली भाषा का सहारा लेता है।रामदेव का यह पहला दुस्साहस नहीं है। पतंजलि ने बार-बार भ्रामक विज्ञापनों और अतिशयोक्तिपूर्ण दावों के जरिए लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है। 2021 में, पतंजलि ने अपनी दवा कोरोनिल को कोविड-19 का इलाज बताकर लाखों लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और वैज्ञानिक समुदाय की आलोचना के बाद इसे केवल "इम्यूनिटी बूस्टर" के रूप में बेचने की अनुमति मिली। सुप्रीम कोर्ट ने 2023-24 में पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, और अस्थमा जैसी बीमारियों के इलाज के दावे शामिल थे। कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी को "खोखला" बताकर खारिज किया और विज्ञापनों पर रोक लगाई। 2024 में, उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि के 14 उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस निलंबित कर दिए, क्योंकि ये दावे कानूनन प्रतिबंधित थे।रामदेव की बयानबाजी भी कम विवादास्पद नहीं रही। 2021 में उन्होंने एलोपैथी को "बकवास विज्ञान" और "दिवालिया" कहा, जिसके लिए IMA ने 1000 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस भेजा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की फटकार के बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी। इसके अलावा, पतंजलि के उत्पादों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे। 2022 में, उत्तराखंड के खाद्य सुरक्षा विभाग ने पतंजलि के "शुद्ध गाय का घी" में मिलावट पाई, और 2016 में हरिद्वार की अदालत ने गलत ब्रांडिंग के लिए 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।पतंजलि को सरकारी सहायता का भी असामान्य लाभ मिला। असम में 1,200 एकड़, मध्य प्रदेश में 40 एकड़, और उत्तराखंड में सैकड़ों एकड़ जमीन रियायती दरों पर दी गई। टैक्स छूट, आयुष मंत्रालय का समर्थन, और 2025 में LIC की पतंजलि फूड्स में 7.06% हिस्सेदारी ने इसके कारोबार को बढ़ाया। यह विडंबना है कि एक ओर रामदेव सामाजिक तनाव को हवा देते हैं, और दूसरी ओर सरकारी समर्थन का लाभ उठाते हैं, जो एक निजी कंपनी के लिए अनुचित प्रतीत होता है।हमदर्द की समावेशी विरासत और पतंजलि की विभाजनकारी रणनीति के बीच का अंतर दिन-प्रकाश की तरह साफ है। जहां हमदर्द ने अपने उत्पादों और कार्यों के जरिए समाज को जोड़ा, वहीं रामदेव ने बार-बार अपनी हरकतों से सामाजिक सद्भाव को ठेस पहुंचाई। "शरबत जिहाद" जैसे बयान न केवल हमदर्द की साख को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हैं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक एकता पर भी हमला है। रामदेव का यह व्यवहार निंदनीय और शर्मनाक है, जो एक जिम्मेदार व्यवसायी और सामाजिक व्यक्ति की छवि को धूमिल करता है। समाज को ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है, जो अपने स्वार्थ के लिए एकता की नींव को कमजोर करते हैं। हमदर्द की तरह हमें उन मूल्यों को अपनाना चाहिए, जो समाज को जोड़ते हैं, न कि तोड़ते हैं।
What's Your Reaction?






