मुग़ल शहेनशाह औरंगज़ेब की क़ब्र के लिए हाय तौबा... पैगंबर मोहम्मद स .अ.व.स. की लख़्तेजिगर जनाबे फ़ातेमा स.अ.के क़ब्र और रौज़े को सऊदी हुकूमत द्वारा ढाए जाने पर ख़ामोशी क्यों ... ?

Apr 6, 2025 - 04:28
Apr 6, 2025 - 16:32
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मुग़ल शहेनशाह औरंगज़ेब की क़ब्र के लिए  हाय तौबा...  पैगंबर मोहम्मद स .अ.व.स. की लख़्तेजिगर  जनाबे फ़ातेमा  स.अ.के क़ब्र और रौज़े को सऊदी हुकूमत द्वारा ढाए जाने पर ख़ामोशी क्यों ... ?

[अली रज़ा द्वारा] इतिहास के पन्नों में कई ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं जो मानवता के लिए सबक और चिंतन का विषय बनती हैं। इनमें से एक है जन्नतुल बक़ी की वह दर्दनाक घटना, जब सऊदी सरकार द्वारा इस पवित्र क़ब्रिस्तान में मौजूद कई महत्वपूर्ण क़ब्रों और उनके ऊपर बने रौज़ों को ढहा दिया गया। इस घटना में पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.स.) की प्रिय बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) की क़ब्र और उस पर बना रौज़ा भी शामिल था। यह घटना न केवल इस्लामी इतिहास के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक सवालिया निशान है जो ऐतिहासिक स्थलों के प्रति संवेदनशीलता का दावा करते हैं, मगर इस मामले पर खामोशी अख्तियार कर लेते हैं।जन्नतुल बक़ी: मदीना में स्थित वह क़ब्रिस्तान है जहाँ पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.स.) के परिवार के कई सदस्यों और सहाबियों की क़ब्रें हैं। इसकी पवित्रता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैगंबर (स.अ.व.स.) खुद यहाँ दुआ माँगने और अपने प्रियजनों को याद करने जाया करते थे। हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.), जो पैगंबर की इकलौती बेटी थीं और जिन्हें "सय्यिदतुन निसा-इल-आलमीन" (स्त्रियों की सरदार) का दर्जा प्राप्त है, उनकी क़ब्र भी इसी क़ब्रिस्तान में थी। उनके रौज़े को इस्लामी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। 8 शव्वाल 1345 हिजरी 21 अप्रैल1925 में, जब वहाबी विचारधारा के प्रभाव में सऊदी शासन ने जन्नतुल बक़ी के रौज़ों को ढहाने का फैसला किया, तो यह कदम इस्लामी दुनिया के लिए एक झटके की तरह था। इस कार्रवाई में हज़रत फातिमा (स.अ.) की क़ब्र के साथ-साथ पैगंबर की पत्नियों, उनके बेटे इब्राहिम, और इमाम हसन अ.स. इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ .स. इमाम मोहम्मद बाक़र अ.स. इमाम जाफ़रे सादीक़ अ.स. अन्य सहाबियों की क़ब्रे भी नष्ट कर दी गई। इस घटना को इस्लामी इतिहास में एक दुखद अध्याय के रूप में देखा जाता है, जिसने न केवल भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाया, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरा आघात पहुँचाया।पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.स.) का फातिमा (स.अ.) के प्रति प्रेम और सम्मान किसी से छिपा नहीं है। उनकी शान में कई हदीसें मौजूद हैं जो उनकी महानता को बयान करती हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण इर्शादात हैं जो इस घटना के संदर्भ में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं:"फातिमा मुझसे है और मैं फातिमा से हूँ।"

(सही बुखारी, हदीस नंबर 371)

इस हदीस से साफ़ ज़ाहिर है कि पैगंबर (स.अ.व.स.) और हज़रत फातिमा (स.अ.) के बीच एक गहरा रिश्ता था। उनकी क़ब्र को नुकसान पहुँचाना, अप्रत्यक्ष रूप से पैगंबर की शान के खिलाफ एक कदम माना जा सकता है।"फातिमा मेरे दिल का टुकड़ा है, जो उसे दुख देता है, वह मुझे दुख देता है।"

(सही बुखारी और मुस्लिम)

इस इर्शाद से पैगंबर का अपनी बेटी के प्रति गहरा लगाव और उनकी इज्ज़त का पता चलता है। जन्नतुल बक़ी में उनकी क़ब्र को ढहाना क्या इस हदीस के मायने को ठेस पहुँचाने जैसा नहीं है?"फातिमा जन्नत की औरतों की सरदार है।"

(सही बुखारी, हदीस नंबर 3623)

जब पैगंबर ने उन्हें इतना ऊँचा दर्जा दिया, तो उनकी क़ब्र की हिफाज़त करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी नहीं बनती? आज जब मुग़ल शासक औरंगज़ेब की क़ब्र को लेकर कुछ लोग हाय-तौबा मचाते हैं, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि जन्नतुल बक़ी की इस घटना पर उनकी खामोशी क्यों? औरंगज़ेब एक शासक थे, जिनके कार्यों पर बहस हो सकती है, लेकिन हज़रत फातिमा (स.अ.) का दर्जा इस्लाम में निर्विवाद है। फिर भी, इस घटना को लेकर न तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और न ही इसकी निंदा में आवाज़ें बुलंद हुईं। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं दर्शाता?जन्नतुल बक़ी की यह घटना हमें यह सिखाती है कि इतिहास को संरक्षित करना और अपने धार्मिक प्रतीकों की हिफाज़त करना कितना ज़रूरी है। यह केवल क़ब्रों या रौज़ों की बात नहीं, बल्कि उस भावना और सम्मान की बात है जो इनसे जुड़ी है। पैगंबर (स.अ.व.स.) के इर्शादात हमें याद दिलाते हैं कि हज़रत फातिमा (स.अ.) का मकाम कितना ऊँचा था, और उनकी याद को जिंदा रखना हमारा फर्ज़ है।आज ज़रूरत है कि इस घटना पर चुप्पी तोड़ी जाए और इस्लामी विरासत को सहेजने के लिए एकजुट प्रयास किए जाएँ। यह न केवल हज़रत फातिमा (स.अ.) के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाएगा, बल्कि पैगंबर (स.अ.व.स.) के उस प्रेम को भी सम्मान देगा जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए जताया था।

 

 

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