छत्रपति शिवाजी महाराज और मुसलमान: एक ऐतिहासिक विश्लेषण

छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक थे। उनका शासन, नीति, और सैन्य व्यवस्था धर्मनिरपेक्षता एवं न्याय के सिद्धांतों पर आधारित थी। लेकिन समय-समय पर कुछ लोग उन्हें मुस्लिम-विरोधी दर्शाने का प्रयास करते हैं, जो ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाता। इस लेख में हम इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर चर्चा करेंगे।
क्या शिवाजी महाराज मुस्लिम-विरोधी थे?
शिवाजी महाराज को अक्सर एक कट्टर हिंदू राजा के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन यह उनकी वास्तविक नीति से भिन्न है। उनके शासनकाल में धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया। उनके दरबार और सेना में बड़ी संख्या में मुस्लिम अधिकारी और सैनिक थे।
ऐतिहासिक प्रमाण:
• औरंगज़ेब का विरोध धार्मिक नहीं, राजनीतिक था – शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच संघर्ष किसी धर्म के कारण नहीं था, बल्कि वह स्वराज्य और मुगलों के विस्तारवादी नीति के विरोध में था।
• इस्लामिक धार्मिक स्थलों का सम्मान – शिवाजी महाराज ने कभी किसी मस्जिद या दरगाह को नुकसान नहीं पहुँचाया, बल्कि कई मुस्लिम धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
• महिलाओं और धार्मिक स्थलों की रक्षा – उन्होंने यह स्पष्ट आदेश दिया था कि उनकी सेना किसी भी महिला का अपमान नहीं करेगी और किसी भी धार्मिक स्थल को नुकसान नहीं पहुँचाएगी।
शिवाजी महाराज की सेना में मुस्लिमों की भूमिका
शिवाजी महाराज की सेना में हिंदू और मुसलमान दोनों को समान अवसर दिए गए। उनके कई सेनापति, नौसेना प्रमुख, तोपखाने के विशेषज्ञ, और कूटनीतिज्ञ मुसलमान थे।
मुसलमानों के महत्वपूर्ण पद और योगदान:
• सिद्दी इब्राहिम (तोपखाने के प्रमुख) – शिवाजी महाराज की सेना में तोपखाने की कमान संभालने वाले प्रमुख अधिकारी थे।
• दौलत खान (गुप्तचरी विभाग प्रमुख) – शिवाजी महाराज की खुफिया एजेंसी के मुख्य अधिकारी थे, जो अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यों में लगे थे।
• मुस्लिम मावलियों की संख्या – शिवाजी महाराज की पैदल सेना में बड़ी संख्या में मुस्लिम सैनिक थे, जिन्हें ‘मावले’ कहा जाता था।
• नौसेना में मुस्लिमों की भागीदारी – उनकी नौसेना में भी मुसलमानों की बड़ी संख्या थी, जिनमें कई सिद्दी समुदाय के थे।
• काझी हैदर (राजनीतिक सलाहकार) – वे शिवाजी महाराज के शासन में कानूनी और प्रशासनिक सलाहकारों में से एक थे।
हिंदू-मुस्लिम नफरत क्यों फैलाई जाती है?
इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का प्रयास कई बार राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है। शिवाजी महाराज को केवल हिंदू प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है, जिससे यह धारणा बनाई जाती है कि वे मुस्लिम-विरोधी थे।
• औपनिवेशिक इतिहासकारों की चाल – ब्रिटिश शासन के दौरान "फूट डालो और राज करो" नीति के तहत शिवाजी महाराज की छवि को बदलने की कोशिश की गई।
• राजनीतिक स्वार्थ – कुछ राजनीतिक गुट शिवाजी महाराज की छवि को केवल एक धार्मिक नेता के रूप में स्थापित कर, समुदायों के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश करते हैं।
शिवाजी महाराज केवल हिंदू राजा नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष और न्यायप्रिय शासक थे, जिनके लिए उनका राज्य सबसे पहले था। उनकी सेना में हिंदू-मुसलमान दोनों को समान अवसर दिए गए थे, और उन्होंने कभी भी किसी धर्म विशेष के विरुद्ध भेदभाव नहीं किया।
आज के समय में हमें इतिहास को सही संदर्भ में समझने और गलतफहमियों को दूर करने की आवश्यकता है। शिवाजी महाराज का आदर्श हमें यह सिखाता है कि किसी भी राष्ट्र के लिए एकता, समानता और न्याय सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, न कि धार्मिक विभाजन। वे कहेते थे !
"राज्य धर्म से नहीं, नीति और न्याय से चलता है" !
दैनिक सिटिज़न सारांश के सभी पाठको को छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती की हार्दिक शुभ कामनाए !
अली रज़ा आबेदी
कार्यकारी संपादक
दैनिक सिटिज़न सारांश !
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