मुर्गियों की मुक्ति से वनतारा तक: अनंत की दरियादिली का तमाशा"

अनंत अंबानी की "दरियादिली" का एक नया किस्सा सुनने को मिला है—मुर्गियों से भरा ट्रक देखकर उनका दिल पसीज गया और उन्होंने सारी मुर्गियाँ खरीदकर आज़ाद कर दीं। गोदी मीडिया, जिसमें अंबानी परिवार की मोटी हिस्सेदारी है, इस "महानता" के गीत गाने में जुट गई। "देखिए, कितना बड़ा दिल है हमारे अनंत का!"—ऐसे शीर्षकों के साथ चैनल्स पर बहस छिड़ गई। लेकिन ज़रा ठहरिए, इस कहानी में वनतारा प्रोजेक्ट का ज़िक्र भी तो करना बनता है, जो जानवरों के "संरक्षण" का ढोल पीटता है।वनतारा, जो जामनगर की रिफाइनरी की छाया में 3,000 एकड़ में फैला है, दावा करता है कि ये घायल और संकटग्रस्त जानवरों का स्वर्ग है। लेकिन कुछ देश—वेनेजुएला, UAE, ब्राजील—कहते हैं, "अरे भाई, ये जानवर कहाँ से आ रहे हैं? कहीं तस्करी तो नहीं?" अंबानी खेमा जवाब देता है, "नहीं-नहीं, सब बचाव अभियान है!" अब मुर्गियों की आज़ादी की खबर को जोड़ दें। सोचिए, एक तरफ विदेशी जानवरों का "बचाव", दूसरी तरफ सड़क पर मुर्गियों की "मुक्ति"—लगता है अनंत भाई जानवरों के मसीहा बनने की राह पर हैं।मगर मज़ा तब है, जब गोदी मीडिया इसे "संवेदनशीलता" का तमगा देती है। ट्रक से मुर्गियाँ खरीदना तो ठीक, लेकिन क्या वो वाकई जंगल में उड़ेंगी? या वनतारा में "संरक्षित" होकर रिफाइनरी के धुएँ के बीच योग करेंगी? और अगर इतना ही प्यार है जानवरों से, तो रिफाइनरी का प्रदूषण क्यों नहीं रोकते? खैर, ये सवाल पूछना तो बेकार है—जब कैमरे चमक रहे हों और स्क्रिप्ट तैयार हो, तो सच की कौन परवाह करता है? अनंत की "दरियादिली" और वनतारा की "पवित्रता" का ये कॉकटेल बड़ा मज़ेदार है—न पीने से नशा, न देखने से मज़ा! बस तालियाँ बजाइए, और आगे बढ़िए।
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