विलादत इमाम हसन अ.स . आप सब को मुबारक... एक ऐसा मज़लुम इमाम जिसे ग़ैर तो ग़ैर अपनो ने भी दुख पहोंचाया !

• जन्म: 15 रमज़ान 3 हिजरी (625 ईस्वी)
• माता-पिता: हज़रत अली अ.स. और हज़रत फ़ातिमा स.अ.
• नामकरण: जब इमाम अली अ.स. ने उनका नाम रखने का विचार किया, तो रसूलुल्लाह स.अ.व. ने कहा कि यह काम अल्लाह का है। जिब्राईल अ.स. आए और कहा कि अल्लाह ने इस बच्चे का नाम "हसन" रखा है। (शेख कुलैनी, अल-काफी, जिल्द 1, पृष्ठ 441)
2. रसूलुल्लाह स.अ.व. का इमाम हसन अ.स. से प्रेम
• रसूलुल्लाह स.अ.व. ने फरमाया:
"हसन और हुसैन जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं।" (सुनन इब्ने माजा, हदीस 118, मुस्लिम, हदीस 2424)
• एक बार रसूलुल्लाह स.अ.व. ने इमाम हसन अ.स. को कंधों पर बैठाया और कहा:
"ऐ अल्लाह! मैं इससे मुहब्बत करता हूँ, तू भी इससे मुहब्बत कर।" (सहीह बुखारी, हदीस 3745)
3. सुलह मुआहिदा (संधि) और लोगों की गलतफहमी
• मुआविया की चालाकी और धोखेबाजी के कारण इमाम हसन अ.स. को 41 हिजरी में मुआविया से संधि (सुलह) करनी पड़ी।
• कुछ लोगों ने इमाम अ.स. पर आरोप लगाए, लेकिन इमाम हसन अ.स. ने कहा:
"अगर मेरे पास मददगार होते, तो मैं मुआविया से जंग करता। लेकिन मैंने उम्मत को खून-खराबे से बचाने के लिए सुलह की है।" (शेख मुफीद, अल-इरशाद, पृष्ठ 190-192)
4. ज़हर दिया जाना और शहादत
• 50 हिजरी में मुआविया की साजिश से उनकी पत्नी जूदा बिन्ते अशअस ने ज़हर दे दिया।
• इमाम हसन अ.स. ने भाई इमाम हुसैन अ.स. से कहा:
"मुझे ज़हर दिया गया है। जब मैं शहीद हो जाऊँ, तो मेरी मिट्टी को नबी स.अ.व. की क़ब्र के पास ले जाना, लेकिन अगर कोई रोकता है तो जंग मत करना।" (शेख अब्बास क़ुम्मी, मुन्तह़ल आमाल, पृष्ठ 73-75)
5. रसूलुल्लाह स.अ.व. के पास दफन करने से रोकना
• जब इमाम हुसैन अ.स. ने वसीयत के अनुसार इमाम हसन अ.स. के जनाज़े को रसूलुल्लाह स.अ.व. की क़ब्र के पास ले जाना चाहा, तो मुआविया और मरवान की साजिश से बनी उमय्या ने रोका।
• आयशा और मदीने के गवर्नर मरवान ने सेना भेजी और जनाज़े पर तीरों की बौछार कर दी।
• 70 तीर इमाम हसन अ.स. के जनाज़े पर लगे।
(इब्ने ताऊस, लुहूफ़, पृष्ठ 52-54)
6. जन्नतुल बक़ी में दफन
• जब जंग की आशंका बढ़ी, तो इमाम हुसैन अ.स. ने इमाम हसन अ.स. को जन्नतुल बक़ी में दफन किया।
• इमाम हसन अ.स. ने पहले ही कहा था:
"मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण खून बहे। अगर मुझे रोका जाए तो लड़ाई मत करना।"
इमाम हसन अ.स. की पूरी ज़िन्दगी सबर, इंसाफ़ और उम्मत की भलाई के लिए गुज़री।
• उन्हें ज़हर देकर शहीद किया गया।
• उनके जनाज़े पर तीरों से हमला हुआ।
• रसूलुल्लाह स.अ.व. की क़ब्र के पास दफन से रोका गया।
यह बनी उमय्या की सबसे बड़ी साजिशों में से एक थी, जो इस्लाम को कमजोर करने के लिए की गई।
इमाम हसन अ.स. और मुआविया के बीच हुई सुलह (संंधि) के बाद, कई लोगों ने इमाम हसन अ.स. पर विभिन्न आरोप लगाए और उन्हें ताने दिए। इन तानों और आरोपों का मुख्य कारण यह था कि कुछ लोग युद्ध को जारी रखना चाहते थे, जबकि इमाम हसन अ.स. ने मुसलमानों की भलाई के लिए संधि को प्राथमिकता दी।
• शेख मुफीद (अल-इरशाद, पृष्ठ 190-192):
• जब इमाम हसन अ.स. ने मुआविया से सुलह की, तो उनके कुछ साथियों ने उन्हें "ज़िल्लत (अपमान)" का आरोप दिया। इस पर इमाम हसन अ.स. ने जवाब दिया:
"मैंने अपने नाना रसूलुल्लाह स.अ.व. से सुना है कि मेरा बेटा (हसन) मुसलमानों के बीच सुलह कराएगा ताकि खून-खराबा न हो।"
• अल-शेख अब्बास क़ुम्मी (मुन्तह़ल आमाल, पृष्ठ 73-75):
• मुआविया के प्रचार के कारण कुछ लोगों ने इमाम हसन अ.स. को "दुनिया पसंद" कहा, लेकिन हकीकत में उन्होंने सुलह सिर्फ इस्लाम को बचाने के लिए की थी।
• शेख कुलैनी (अल-काफी, जिल्द 8, हदीस 20):
• कुछ लोगों ने इमाम हसन अ.स. को "युद्ध न करने वाला" कहकर ताने दिए। इस पर उन्होंने कहा:
"अगर मेरे पास नुसरत (सच्चे समर्थक) होते, तो मैं मुआविया से युद्ध करता, लेकिन जब अपने ही लोग बेवफाई करें तो क्या किया जाए?"
• सैय्यद इब्ने ताऊस (लुहूफ़, पृष्ठ 52-54):
• इमाम हसन अ.स. को जब उनके कुछ साथियों ने "सुलह करने वाला" कहकर ताने दिए, तो उन्होंने कहा:
"अगर मैंने सुलह न की होती, तो इस्लाम का नाम मिट जाता।"
इमाम हसन अ.स. पर लगाए गए ताने और आरोप केवल राजनीतिक गलतफहमियों की वजह से थे। उन्होंने इस्लाम की भलाई और उम्मत के खून-खराबे को रोकने के लिए सुलह की।
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