घनो जिओ ... घनो जिओ... आका मौला, मोदी घनो जिओ... बोहरा समुदाय मुसलमानो का यार गद्दार... ? वक़्फ बिल पर सरकार की तरीफ मे कसीदे... वक़्फ से बोहरा समुदाय को बहार रखने के लिए सकार से गुहार... !

17 अप्रैल 2025 को दाऊदी बोहरा समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के लिए उनका आभार जताया। इस मुलाकात में बोहरा समुदाय ने नए वक्फ कानून को "ऐतिहासिक कदम" करार दिया और इसे अपनी लंबे समय से चली आ रही मांगों का समाधान बताया। दूसरी ओर, कुछ मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने बोहरा समुदाय पर "दोहरी नीति" अपनाने और मुस्लिम समाज के व्यापक हितों के साथ "गद्दारी" करने का आरोप लगाया है। यह आरोप इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि बोहरा समुदाय ने कथित तौर पर वक्फ कानून से अपने समुदाय को बाहर रखने की मांग की है, जबकि सार्वजनिक रूप से इसके समर्थन में बयान दिए हैं। इस लेख में इस दोहरी नीति पर कड़ा कटाक्ष करते हुए बोहरा समुदाय की भूमिका, वक्फ बिल के प्रावधानों, और इसके व्यापक प्रभावों का विश्लेषण सिनीयर जर्नलिस्ट अली रज़ा आबेदी ने किया है।वक्फ बिल 2025: (संशोधन) अधिनियम, 2025 को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो चुकी है, और सरकार ने इसे लागू करने के लिए अधिसूचना जारी की है। यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार की रोकथाम, और जरूरतमंद मुस्लिमों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों, के कल्याण के लिए बनाया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसके कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है, और अगली सुनवाई 5 मई 2025 को निर्धारित है।बिल के प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:वक्फ बोर्डों में शिया, सुन्नी, बोहरा, आगा खानी, और पिछड़े मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति।वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त नियम।महिलाओं और पसमांदा मुस्लिमों के हितों की रक्षा पर जोर।इस बिल को लेकर मुस्लिम समुदाय में दो धड़े उभरे हैं। एक धड़ा इसे मुस्लिमों की भलाई के लिए सुधारवादी कदम मानता है, जबकि दूसरा इसे मुस्लिम संपत्तियों पर सरकारी हस्तक्षेप और धार्मिक स्वायत्तता के उल्लंघन के रूप में देखता है। बोहरा समुदाय का रुख इस विवाद को और जटिल बनाता है।
दाऊदी बोहरा समुदाय, जो शिया मुस्लिमों का एक समृद्ध और प्रभावशाली उप-समूह है, ने वक्फ बिल की सार्वजनिक रूप से तारीफ की है। समुदाय के प्रतिनिधियों ने इसे "चिर-लंबित मांग" का समाधान बताया और प्रधानमंत्री के "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" के दृष्टिकोण पर भरोसा जताया। हालांकि, कुछ स्रोतों और मुस्लिम नेताओं के अनुसार, बोहरा समुदाय ने निजी तौर पर वक्फ कानून के दायरे से अपने समुदाय को बाहर रखने की मांग की है।यह दोहरा रवैया कई सवाल उठाता है, यदि बोहरा समुदाय वक्फ बिल को इतना लाभकारी मानता है, तो फिर इसे अपने समुदाय पर लागू करने से परहेज क्यों? क्या यह केवल सत्तारूढ़ दल के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की रणनीति है? जब देश के कई मुस्लिम संगठन और नेता इस बिल को "मुस्लिम विरोधी" और "संपत्ति हड़पने की साजिश" बता रहे हैं, तब बोहरा समुदाय का इसका समर्थन करना क्या मुस्लिम समाज के व्यापक हितों के खिलाफ नहीं है? बोहरा समुदाय में सैयदना (आध्यात्मिक नेता) का प्रभाव सर्वोपरि है। क्या यह समर्थन सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन की व्यक्तिगत रणनीति का हिस्सा है, जो समुदाय को सरकारी नीतियों के अनुकूल बनाकर अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं?AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे पर बोहरा समुदाय पर तीखा हमला बोला। उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह पर बोहरा समुदाय को "धोखा देने" का आरोप लगाया और कहा कि वक्फ बिल में बोहरा समुदाय की कोई विशेष मांग शामिल नहीं है। ओवैसी ने इसे "बोहरा समुदाय के कंधे पर तोप रखकर चलाने" की साजिश करार दिया।बोहरा समुदाय, जिसकी भारत में अनुमानित आबादी 10-12 लाख है, मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और राजस्थान में निवास करता है। यह समुदाय अपनी प्रगतिशील छवि, व्यापारिक कौशल, और सामुदायिक एकजुटता के लिए जाना जाता है। बोहरा समुदाय का नेतृत्व सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन करते हैं, जिनका समुदाय पर गहरा प्रभाव है।नरेंद्र मोदी और बोहरा समुदाय के बीच संबंध लंबे समय से चर्चा में रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मोदी ने बोहरा समुदाय के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए, जो व्यापारियों के हित में उनकी नीतियों से लाभान्वित हुआ। 2018 में इंदौर और 2023 में मुंबई में बोहरा समुदाय के कार्यक्रमों में मोदी की उपस्थिति ने इन संबंधों को और मजबूत किया।हालांकि, 2002 के गुजरात दंगों के बाद बोहरा समुदाय ने कुछ समय के लिए बीजेपी का विरोध किया था। फिर भी, मोदी की व्यापार-समर्थक नीतियों और सैयदना के साथ उनकी व्यक्तिगत मुलाकातों ने समुदाय को फिर से बीजेपी के करीब ला दिया। यह रणनीतिक गठजोड़ अब वक्फ बिल के संदर्भ में एक बार फिर सामने आ रहा है। बोहरा समुदाय की वक्फ बिल को लेकर दोहरी नीति को केवल स्वार्थ के चश्मे से देखना सतही होगा। यह एक रणनीतिक चाल भी हो सकती है, जिसका उद्देश्य समुदाय के हितों को सुरक्षित रखना और सत्तारूढ़ दल के साथ अपने प्रभाव को बनाए रखना है। लेकिन इस रणनीति की कीमत क्या है?जब दरभंगा, मुर्शिदाबाद, और अन्य क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय वक्फ बिल के खिलाफ सड़कों पर उतर रहा है, तब बोहरा समुदाय का इसका समर्थन करना एक विभाजनकारी कदम है। यह मुस्लिम समाज के भीतर पहले से मौजूद शिया-सुन्नी और अन्य वैचारिक मतभेदों को और गहरा सकता है। बोहरा समुदाय का यह दावा कि वक्फ बिल उनकी मांगों को पूरा करता है, तब खोखला लगता है, जब वे स्वयं इस कानून के दायरे से बाहर रहने की मांग कर रहे हैं। यह न केवल उनकी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि अन्य मुस्लिम समुदायों में उनके प्रति अविश्वास को भी बढ़ाता है।बोहरा समुदाय का बीजेपी के साथ निकटता और वक्फ बिल का समर्थन कुछ लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह समुदाय सत्तारूढ़ दल की "मुस्लिम-विरोधी" छवि को नरम करने के लिए एक कठपुतली के रूप में इस्तेमाल हो रहा है? ओवैसी का यह बयान कि "बोहरा समुदाय के कंधे पर तोप रखी गई" इस संदेह को और पुख्ता करता है। बोहरा समुदाय की यह रणनीति अल्पकाल में उनके लिए लाभकारी हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल में यह उन्हें मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से से अलग-थलग कर सकती है। जब वक्फ बिल के कुछ प्रावधान, जैसे गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, मुस्लिम समुदाय के लिए विवाद का कारण बन रहे हैं, तब बोहरा समुदाय का मौन या समर्थन एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। वक्फ बिल को लेकर मुस्लिम समुदाय में व्यापक असंतोष है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, सुती, धुलियान, और जंगीपुर जैसे क्षेत्रों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। दरभंगा में कांग्रेस नेता नाजिया ने इसे "काला कानून" करार दिया और इसे मुस्लिम संपत्तियों को हड़पने की साजिश बताया। इन विरोधों के बीच बोहरा समुदाय का बिल के समर्थन में खड़ा होना न केवल एक विडंबना है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या यह समुदाय अपने आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए मुस्लिम समाज के व्यापक हितों की बलि चढ़ा रहा है?बोहरा समुदाय का दावा है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाएगा और गरीब मुस्लिमों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों, के लिए लाभकारी होगा। लेकिन जब वे स्वयं इस कानून से छूट की मांग कर रहे हैं, तो यह दावा खोखला प्रतीत होता है। क्या यह केवल एक दिखावा है, जिसका उद्देश्य सरकार के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना और अपने समुदाय की संपत्तियों को सरकारी हस्तक्षेप से बचाना है? दाऊदी बोहरा समुदाय की वक्फ बिल को लेकर दोहरी नीति एक खतरनाक खेल है। एक ओर, वे सार्वजनिक रूप से बिल की तारीफ कर रहे हैं, जिससे वे सत्तारूढ़ दल के करीब दिखते हैं। दूसरी ओर, वे निजी तौर पर इस कानून से छूट की मांग कर रहे हैं, जो उनके स्वार्थ को उजागर करता है। यह रणनीति अल्पकाल में उनके लिए लाभकारी हो सकती है, लेकिन यह मुस्लिम समाज के भीतर एकता को कमजोर करने और बोहरा समुदाय को अलग-थलग करने का जोखिम उठाती है।बोहरा समुदाय को यह समझना होगा कि उनकी यह दोहरी नीति न केवल उनकी विश्वसनीयता को कम करती है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि वे अपने निजी हितों को समुदाय के व्यापक हितों से ऊपर रखते हैं। जब देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम समुदाय इस बिल के खिलाफ एकजुट होकर विरोध कर रहा है, तब बोहरा समुदाय का यह रुख न केवल गद्दारी की तरह दिखता है, बल्कि यह एक ऐसी मिसाल कायम करता है जो भविष्य में मुस्लिम समाज के लिए हानिकारक हो सकती है। "बोहरा समुदाय ने वक्फ बिल की तारीफ में कसीदे तो पढ़े, लेकिन अपने लिए छूट की गुहार लगाकर यह साबित कर दिया कि 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा उनके लिए सिर्फ अपने हितों तक सीमित है।" यह समय है कि बोहरा समुदाय अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे और मुस्लिम समाज के साथ एकजुटता दिखाए, वरना यह दोहरा खेल उन्हें इतिहास के उस पन्ने पर ले जाएगा, जहां "स्वार्थ" और "गद्दारी" के किस्से दर्ज होते हैं।
[ क्रमशः]
What's Your Reaction?






